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शायद तुम आने को हो ..बस कुछ देर और रुक जाओ बूंदों

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क्यूँ बोहोत मुश्किल होती है बारिश के लम्हों को अकेले देखना ? क्यूँ लगती हैं वो सुहानी हवा और बूंदे मदमस्त, नाचते, गाते ? ऐसा लगता है जैसे प्रकृति का कण कण झूम रहा है ...हर कोई खुश है...सब नाच रहे हैं, उल्लास मन रहे हैं।.. सब सुंदर लगता है लेकिन कष्टदायक, असहनीय .... उन पलों के विचार कहते हैं यह घडी बीती जा रही है।.. तुम नहीं हो।.. जल्दी आओ कहीं यह पल चले न जाएँ।.. आओ हम भी मदमस्त हो कर इन बूंदों के साथ नाचें ...गायें.... लेकिन तभी वो बूँदें धीरे धीरे थकती हुई प्रतीत होती हैं।.. जैसे वो थक गयी उस हर्षोल्लास से।..अब वो बस मुस्कुरा रही है।.. फिर मन और भी व्याकुल हो जाता है।..बस कुछ देर और रुक जाओ बूंदों।..

सदियाँ बीत जायें तो भी ग़म न हो !

मैं वायदा करता हूँ मैं हमेशा तुमसे वफादार रहूँगा. बदले में बस तुम्हारा प्यार चाहिए होगा.  जब तुम मुझसे मिलोगे अपनी उन चमकीली आँखों से मुस्कुराते हुए तुम मेरे पास आकर बैठ जाना. अपने दिन भर का हाल सुनाना और वो सभी किस्से जिन्हें याद करके तुम हमेशा मुस्कुराते रहते हो वो भी बताना... मुझे भी हक होगा तुम्हारे उस हर प्यारे लम्हे का जिसे सुन कर मैं उन यादो मैं खो जाऊंगा और महसूस करूंगा जैसे उस वक़्त मैं भी वहां था.  हम काफी बेडरूम में ही पियेंगे या फिर उस छत पर जहाँ से पूरा शहर और खूबसूरत पेड़ दिखते होंगे. उन बादलो को गुजरते देखकर जैसे सदियाँ बीत जायें तो भी ग़म न हो !

मैं इंतज़ार करूँगा....हमेशा :)

अगर तुम मेरी ज़िन्दगी में आओगे तो मेरे जीवन में उर्जा भर जाएगी. मेरा पूरा दिन काम में बीतता है. मेरे अन्दर बहुत उर्जा है लेकिन मैं थक जाता हूँ ...काम से नहीं...निराशा से. के कैसे मिलोगे तुम ? किस मोड़ पे मिलोगे तुम ? कहाँ हो तुम... तुम्हारा स्पर्श पाने के लिए तड़प रहा हूँ मैं.. कोई भी जीव अकेला नहीं रहना चाहता ...मैं भी नहीं तुम्हारे सफ़ेद हाथों को चूमना चाहता हूँ... तुम्हारे लिए जीवन की सब खुशियाँ लाना चाहता हूँ....सब कुछ है बस एक तुम नहीं हो.. कभी सोचता हूँ तुम २५ साल के होगे फिर अगले ही पल सोचता हूँ नहीं तुम होगे ३५ के या शायद ४० के :) सब कुछ फ़िल्मी कहानियों की तरह नहीं होगा बल्कि उससे कहीं सुंदर. तुम और मैं घंटो बातें किया करेगे... जिसमे कहीं भी "मैं" या "तुम" नहीं होगा. मुझे  तुम्हारे लिए बदलना होगा और तुम मेरे लिए बदलो या नहीं मुझे इसका अफ़सोस नहीं होगा... हमारा सफ़र विश्वास और ठहराव पर चलेगा. तुम्हे मुझसे प्यार होगा और मुझे तुमसे. तुम मेरे business   में हेल्प करोगे और मैं तुम्हारे काम में. तुम्हे प्रकृति से प्यार होगा और आकाश और समंदर से भी, तुम

झूठी मुस्कराहट

जीने को दिल नहीं चाहता। परिवार चाहता है मैं किसी लड़की से शादी करके घर बसा लूं। रोज मानसिक तौर पर दबाव दिया जाता है। पर क्या कर सकता हूँ मैं। वो सोचते हैं यह एक मानसिक बीमारी है जो किसी डॉक्टर के पास जा कर ठीक हो जाएगी। उनके लटके हुए चेहरे देख कर लगता है अब मरने के सिवा कोई चारा नहीं...... शादी करना बड़ी बात नहीं....लेकिन कब तक मैं उस लड़की को धोखा दे सकता हूँ... और नहीं तो क्या यह एक धोखा ही तो है.... सेक्स भी जबरदस्ती करना होगा... झूठी मुस्कराहट देनी होगी... ज़िन्दगी और वोह दोनों बोझ बन कर रह जायेंगे .... दिल अभी भी तड़पता है लेकिन तब आत्मा भी तडपेगी।

लगता है तुम अब नहीं आओगे

दिल मर रहा है...रोज मरता है...वो उम्मीदें कहीं खोई जा रही हैं...लगता है तुम अब नहीं आओगे...यह नजर भी अब उतनी तेज नहीं की तुम्हारी आस के लिए एकटक रास्ते पर रख सकूँ...तुम्हे ढूंढूं भी तो कहाँ ?

आज मन फिर उदास है !

आज मन फिर उदास है ! काश इस जिंदगी में भी उम्मीद होती तो शायद हम दो कदम और आगे होते। हर सुबह उठने के बाद यह नहीं सोचना पड़ता की आज क्यूँ जियें । मानव जिंदगी में कामुकता को दबा पाना बहुत मुश्किल होता है...पर कोई बात नहीं , सम्भोग का सुख ना मिल पाया कोई बात नहीं, एक जीवन साथी तो मिल जाता । लेकिन हमारे समाज के ठेकेदारों ने हमें समाज का हिस्सा ही नहीं समझा है। हम अपनी यह इच्छाएं खुले तौर पर किसी से नहीं कह सकते। डेल्ही के पार्को में जाने की मेरी हिम्मत नहीं होती। इन्टरनेट पर अपनी तस्वीर डालने में डर लगता है ...सब कुछ समाज के लिए, घर के लिए, परिवार की इज्ज़त के लिए। लेकिन वो घुटन ! जो आज फिर हो रही है ...कहाँ जाऊं ? किस से कहूँ ?

समलैंगिक और नफरत

सबसे पहले स्ट्रेट लोगो को समलैंगिक लोगो ले प्रति नफरत का भाव छोर देना चाहिए...समलैंगिक न तो बलात्कारी हैं और न बाल शोषण के अपराधी...इस दुनिया में कुछ भी अप्राकर्तिक नहीं है, सब कुछ प्रकृति ने ही बनाया है, इश्वर ने ही बनाया है.....प्रकृति में ही व्याप्त है, बहार से कुछ नहीं आया..इसलिए यह भी प्राकर्तिक ही है . ....कोई अपनी मर्जी से समलैंगिक नहीं होता ..या उस से उम्र के एक पड़ाव पर यह नहीं पुछा जाता की क्या तुम समलैंगिक बनना चाहते हो ? यह तो प्राकर्तिक ही है की प्राकृतिक हारमोंस या विपरीत सेक्स के प्रति अपने आप आकर्षण पैदा होता है....लेकिन प्रकृति हमेशा एक तरह से काम नहीं करती...कभी कभी वेह भी अपनी दिशा बदल लेती है... समलैंगिक समुदाय को लोग किन्नर या समलिंगी बलात्कार या बाल शोषण से जोड़ कर देखते हैं, कुछ तो यह सोचते हैं की यह पल भर की वासना को तृप्त करने का एक सस्ता तरीका है...जबकि ऐसा नहीं है....यह भी उतना पवित्र है जैसे एक पुरुष और स्त्री का रिश्ता....एक समलैंगिक सिर्फ सेक्स को नहीं सोचता...वो उन सभी खूबसूरत पलों को भी सोचता है जो एक साफ़ सुथरी खूबसूरत जिंदगी में होते हैं.....जिस तरह