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शायद तुम आने को हो ..बस कुछ देर और रुक जाओ बूंदों

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क्यूँ बोहोत मुश्किल होती है बारिश के लम्हों को अकेले देखना ? क्यूँ लगती हैं वो सुहानी हवा और बूंदे मदमस्त, नाचते, गाते ? ऐसा लगता है जैसे प्रकृति का कण कण झूम रहा है ...हर कोई खुश है...सब नाच रहे हैं, उल्लास मन रहे हैं।.. सब सुंदर लगता है लेकिन कष्टदायक, असहनीय .... उन पलों के विचार कहते हैं यह घडी बीती जा रही है।.. तुम नहीं हो।.. जल्दी आओ कहीं यह पल चले न जाएँ।.. आओ हम भी मदमस्त हो कर इन बूंदों के साथ नाचें ...गायें.... लेकिन तभी वो बूँदें धीरे धीरे थकती हुई प्रतीत होती हैं।.. जैसे वो थक गयी उस हर्षोल्लास से।..अब वो बस मुस्कुरा रही है।.. फिर मन और भी व्याकुल हो जाता है।..बस कुछ देर और रुक जाओ बूंदों।..